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Kavita Sharrma

Abstract

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Kavita Sharrma

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मैं तिरंगा

मैं तिरंगा

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मैं तिरंगा कहता हूँ अपनी कहानी,

अपनी आप बीती अपनी ज़ुबनी

वह समां क्या खूब था,

हर तरफ एक नया जुनून था।


मैं गर्व था, मैं शान था,

मैं जीत की पहचान था

फिरंगी का परचम न लहरे,

यह थी हर हिंदुस्तानी ने ठानी

मैं तिरंगा कहता हूँ अपनी कहानी,

अपनी आप बीती अपनी ज़ुबानी।


न कोई सिख, न कोई मुस्लिम,

न कोई कौम, न कोई मज़हब

मैं हर एक का सपना बन कर,

दौड़ रहा था रगों में लहू बनकर


फिर चाहे वो भगत सिंह हो यां हो गांधी,

मेरे खातिर हर एक ने दी अपनी कुर्बानी,

मैं तिरंगा कहता हूँ अपनी कहानी,

अपनी आप बीती अपनी ज़ुबनी।


सबका सपना रंग लाया,

लाल किले पर जब मुझे फहराया

मुझे इतना प्यार मिला और इतना सम्मान मिला,


मैं भी इतरया, मैं भी इठलाया

जब दी थी मुझे नेहरू ने सलामी

मैं तिरंगा कहता हूँ अपनी कहानी,

अपनी आप बीती अपनी ज़ुबनी।


फिर आज क्यों है इतना रक्तपात ?

क्यों है इतना जातिवाद ?

हर तरफ ये भ्रष्टाचार, पनप रहा आतंकवाद,

बच्चों, अब तुम ही हो मेरी आशा


आज के माहौल की बदल सकते हो तुम परिभाषा

उठाओ कदम, आगे बढ़ो तुम किसी से अब न डरो !

उठाओ हाथ और दो मुझे सच्ची सलामी,

मैं तिरंगा कहता हूँ अपनी कहानी,

अपनी आप बीती अपनी ज़ुबानी।


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