मैं पुस्तक हूँ
मैं पुस्तक हूँ
विचारों का एक अम्बार हूँ
एक बिंदु का भी अर्थ रखती हूँ
कविता हूँ, गद्य भी हूँ, ग्रन्थ हूँ
कुरान, बाइबिल, गीता भी हूँ
विद्या रुपी सरिता हूँ
शब्दों की बूंदों भरी हूँ
अथाह शब्द सिंधु हूँ
लेखकों की लेखनी से बनी
उत्कृष्ट रचनाओं में बस्ती हूँ
हर युग का बखान करती हूँ
हर वक्त की पहचान हूँ
कहीं भाव ख़ुशी के दर्शाती हूँ
कहीं पीड़ा का बखान करती हूँ
कहीं पर आस्था बढ़ाती हूँ
तो कहीं विश्वास दिलाती हूँ
मेरे अन्दर जब कोई झांके
अन्धविश्वास भगाती हूँ
ज्ञान का अथाह एक भंडार हूँ
शिक्षा का दान करती रहती हूँ ।
कितनों ने मुझसे ही उपलब्धियां पाई
कितने विद्वानों को पैदा करती हूँ
हर दुःख सुख में सही मित्र हूँ
हर पग पग पर मैं साया हूँ
जिसने कभी साथ मेरा न छोड़ा
उस मानव की प्रगति का रास्ता हूँ ।
जिसने मुझे जाना नहीं, माना नहीं
जाहिल बनकर रह गया
अरे मैं तो ईश्वर का वरदान हूँ
मुझसे ही इंसान ने सब कुछ पाया
मैं एक पुस्तक हूँ
अभिन्न विचारों की धारा हूँ
सृष्टि का हर अंश मुझ में छिपा हैं
मैं भी एक अटूट अमृत धारा हूँ।
