"मैं नदी के प्रवाह सा"
"मैं नदी के प्रवाह सा"
हर किनारा ठहरने का ज़रिया नहीं
तुम बहते रहना स्वतंत्रत नदी की भाँति
जिसमें किनारा तो है परन्तु ठहराव नहीं।
त्याग देना हर बोझ मन से जैसे
बहा ले जाती है वो सब
नहीं रखती साथ सब कुछ।
जो है उसके अस्तित्व को स्वीकृति देना
जो नहीं उसे जाने की अनुमति
क्योंकि उसके बहाव मे क्या ठहरेगा क्या नहीं
निर्भर करता है उपस्थित परिस्थितियों पर।