मैं नदी हूँ, कुछ प्रेम सी हूँ
मैं नदी हूँ, कुछ प्रेम सी हूँ
हर कोई मेरा प्यासा,
मैं जीवन का अभिन्न हिस्सा।
जहां झुकाव, उस राह मैं बही,
धन का मेरे लिए कोई मोल नहीं
मैं नदी हूँ, मैं कुछ प्रेम सी हूँ !
हर राहगीर की तलब हूंँ मैं,
उस ईश्वर का वरदान हूँ मैं।
करती बंजर को भी आबाद,
न कोई रूप, न कोई आकर
मैं नदी हूँ, मैं कुछ प्रेम सी हूँ !
न कोई चट्टान रोके,
न कोई बाधा टोके।
जब शान्त, तो सौन्दर्य हूँ,
जब प्रचंड, तो प्रलय हूँ
मैं नदी हूँ, मैं कुछ प्रेम सी हूँ !
बहती चली जाती हूँ मैं,
सादगी में ही हैं मेरी पहचान।
कभी बुरे विकारों ने मैला किया,
पर अन्त में शुद्धता ही मेरा आधार
मैं नदी हूँ, मैं कुछ प्रेम सी हूँ !
न मैं उत्गम को कभी भूली,
आलिंगन कर सागर में मिली।
वाष्प बन मेघों में जा घुली,
मैं हूंँ प्रकृति की अद्भुत पहेली।
मैं नदी हूँ, मैं कुछ प्रेम सी हूँ !