मैं नारी हूँ
मैं नारी हूँ
नारी को अपनी महत्ता साबित करने के लिए
क्या देवी कहलवाना जरुरी है?
सीता या शबरी के अलावा भी तो
कोई रूप हो सकता है उसका।
नारी को इंसान समझने की भूल
नहीं कर सकते क्या हम ?
कभी सोचा है, कितनी चाहत होगी नारी में,
एक साधारण मनुष्य की तरह जीने की।
उसने भी तो कभी कल्पना की होगी,
इंद्रधनुष के रंगों में ढलने की।
अन्याय सहूँ , तो मैं देवी।
त्याग दूँ जो अपना सुख, तो मैं देवी।
ग़र सोचूँ अपनी अभिलाषा के बारे मे, तो मैं स्वार्थी।
ग़र उठाऊं अपनी आवाज, तो मैं निर्लज्ज।
लांघ दूँ जो सीमा रेखा, तो मैं चरित्रहीन।
कैसा न्याय है यह ?
मेरे कर्मों का बोझ भी मेरा,
और तेरे कर्मों का बोझ भी मेरा।
मुझे काले और सफ़ेद रंगों में ढालना बंद करो,
मेरे व्यकितत्व में इंद्रधनुष के रंग भी हैं गहरे,
जो तुमने कभी देखे नहीं।
पूजनीय ईश्वर को ही रहने दो।
मुझे एक साधारण मनुष्य बनकर जीने दो।
एक एहसान करो,
मेरे भीतर की नारी को
"नारी "बनकर ही रहने दो।