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shivendra 'आकाश'

Abstract

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shivendra 'आकाश'

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मैं मुक्कमल हूँ इस अधूरेपन में

मैं मुक्कमल हूँ इस अधूरेपन में

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था ख्बाब तू मेरा खूबसूरत जहाँ में,

बस तू अधूरा सपना- सा रह गया,

न लौट दस्तक देना मेरे इस सूने मन मे,

मैं मुक्कमल हूँ इस अधूरेपन में।।


हा माना मैंने की न किये झूठे वादे तूने,

न उन वादों के हम मोहताज रहे,

न लौट धोखा देने आना इस रूठे मन मे,

मैं मुक्कमल हूँ इस अधूरेपन में ।।


हर सांस पे लिखा जिसका नाम हमने,

हो गई हर सांस उसी को समर्पित मन से,

न लौट आना गुजरे हुए राही इस राह में,

मैं मुक्कमल हूँ इस अधूरेपन में ।।


ये न समझना कि हम अधूरे है तेरे बिन,

हम तो पहले भी न पूरे थे और न अब,

न लौट आना माफी मांगने के बहाने में,

मैं मुक्कमल हूँ इस अधूरेपन में।।


  


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