मैं क्या हूँ
मैं क्या हूँ
कभी कभी खुद को
नहीं समझ पाती
कभी बहुत सीधी
साधी सी प्यारी सी लड़की
जो सबका ख्याल
रखती है
सबके बारे में सोचती है
बस झूठ से नाराज हो जाती है
फिर किसी को कुछ नहीं समझती
जब नाराजगी दूर होती है
तो देखती है
रिश्ते दूर उससे बहुत
दूर भो जाते हैं
उसके पास नहीं आते
रिश्तों को निभाने के लिए
झुक जाये
रिश्ते रहते हैं
उसने रिश्तों को
प्यार का पानी
ख्याल की खाद नहीं दी
तो रिश्ते पौधे की तरह
सुख कर मर जाते हैं
औऱ दिल के किसी
कोने में दफन हो जाते हैं।
क्या ऐसे ही जिंदगी
कटेगी और मुझे
मेरी तलाश रहेगी
क्या हूँ मैं।
