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Pallavi Bramhankar

Abstract Inspirational Others

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Pallavi Bramhankar

Abstract Inspirational Others

मैं खुद से प्यार करना चाहती हूं

मैं खुद से प्यार करना चाहती हूं

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मैं खुद से प्यार करना चाहती हूं

खुले आम बस ये इज़हार करना चाहती हूं

यार बस अब किसी और से नहीं

में अपनेआप से बेइंतेहा मोहब्बत करना चाहती हूं


अरसा हो गया, ये दिल मानो जैसे बंद पड़ा है

अब इस दिल में धड़कनों का शोर चाहती हूं

गैरों की नहीं, मुझे खुद की सुनना पसंद है

किसी और का कम, मैं खुद पर खुद का जोर चाहती हूं


कुछ वक्त से जाना मैंने, मैं कितनी खास हूं

खुले बाल, माथे पर इक छोटी बिंदी 

आंखों में काजल, ओठों पर मुस्कान रखना चाहती हूं

अटकी है पैरों में समाज की कुछ बेड़ियां 

तोड़ वो सारी अब पायल की छम छम सुनना चाहती हूं


कोरा कागज़ , नीली स्याही, एक कलम

बस कलम से कलम की पहचान चाहती हूं

दर्द की जो भीड़ लगी है, समेटकर ये सारे 

मैं खुद को कविता लिखना चाहती हूं


ऊंची है उड़ान मेरी, ऊंचा मेरा आसमां

पंख लगाकर कभी, मैं उड़ना चाहती हूं

जमीं से फलक तक, वाकिफ हो चुकी में सबसे

अब मैं खुद से रूबरू होना चाहती हूं


दुख दिया है मुझको हर किसी ने यहां

मैं खुद को खुद से खुश रखना चाहती हूं

ना किसी से लड़ना, ना ही किसी से डरना 

मैं बस खुद की आज़ादी चाहतीं हूं


अकेलापन काफी है मेरा, ये शिकायतें नहीं करता

मौन रखकर सबसे, मैं शांत होना चाहती हूं

बेहतर नाम होगा, शायद हर कही मेरा भी 

निखरता हुआ एक ऐसा किरदार बनना चाहती हूं


बेइंतेहा खुद से मोहब्बत करना चाहती हूं

चाहत, बस इतनी सी रखना चाहती हूं 

सफर में हमसफ़र खास रहना चाहती हूं

अब मैं खुद से प्यार करना चाहती हूं।



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