स्कूल, कुछ यादों का उपहार
स्कूल, कुछ यादों का उपहार
यार कहते हैं ना old is gold
हां वही पुरानी वाली यादें
आज भी याद है मुझे जब
मैंने स्कूल में पेहला कदम रखा था
थोड़ी लड़खड़ाई थी
मां मुझे नही जाना स्कूल बस
इस एक बात पर अड़ी थी ।।
फिर धीरे धीरे उम्र बढ़ रही थी नईं किताबे
नए दोस्त और हर बार नई क्लास
नए नए टीचर्स और हर वक्त
हर पल कुछ नई सीख हमें मिलती जा रही थी
और इन सभिकी इतनी आदत होगई थी ना!
की इनके बिना एक एक पल
गुजारना भी मुश्किल होगया था
जैसे जैसे उम्र का दायरा बढ़ता गया
वैसे वैसे स्कूल से जैसे रिश्ता बिछड़ता चला गया
फिर देखते ही देखते हम कॉलेज की उस
दहलीज पर आकर खड़े हो गए
जिससे पीछे मुड़कर देखना भी
नामुमकिन सा हो गया
अब देखो ना कितना अजीब होता है ना
स्कूल और कॉलेज के बीच का दायरा
स्कूल मतलब बेहिसाब रूल्स और
कॉलेज मतलब लेक्चर्स
bunk करने का जरिया
पर सचमे स्कूल तोह स्कूल ही होता है
ना किसकी फिक्र नाही किसीके दूर जाने का जिक्र
वो मज़ा कॉलेज की रंगीन दीवारों में कहा ?
वो शैतानियां वो मस्ती मज़ाक से भरे दिन
वो होमवर्क ना करने पर मिलने वाली डांट
वो बार बार हर बार मिलने वाला प्यार
और कुछ नटखट से हमारे यार
अब बोहोत याद आता है वो स्कूल
पर अब चाहके भी वो पल फिर से हम नहीं जी पाएंगे
इस बात से दिल दुखता है यार।
जो परिस्थिति अभी है उसी को कर लेते हैं
स्वीकार और जी लेते है ना यार।
