Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

मिली साहा

Abstract

4  

मिली साहा

Abstract

मैं खुद से ही मिल सकूँ

मैं खुद से ही मिल सकूँ

1 min
321


मैं खुद से मिल सकूंँ, खुद को समझ सकूंँ,

दबे हुए जो ख़्वाब हैं, थोड़ी उड़ान दे सकूँ,

बिताना चाहती हूंँ, कुछ पल खामोशी में,

सुनना चाहती हूंँ, खुद को इन तन्हाइयों में।


ज़िंदगी के शोर में, कब से खुद को सुना नहीं,

मेरा वज़ूद, मुझसे रूबरू अब तक हुआ नहीं,

क्या बुरा जो कुछ पल खुद से ही प्यार करूंँ,

उलझनों में तो कभी खुद के लिए सोचा नहीं।


फुरसत के कुछ पल दे ए ज़िंदगी जीने के लिए,

किरदारों से हटकर, खुद को पहचानने के लिए,

थक गया हूंँ ज़िंदगी की दौड़ में भागता भागता,

दौड़ना है लहरों के साथ अपनी खुशी के लिए।


वो पल जो सिर्फ मेरा हो, नहीं किसी का बसेरा,

न कोई चिंता, न उलझन, बस सुकून का सवेरा,

जहांँ ख्वाहिशें नहीं, बस खूबसूरत से ख़्वाब हों,

खुली हवा में लहराऊंँ मैं न हो बंदिशों का पहरा।


थामकर अपना हाथ, दिल से दिल की बात करूंँ,

खुद से ही रूबरू होकर अपनी रूह को महकाऊंँ,

क्या खोया पाया, क्या तेरा मेरा सब झंझटों से दूर,

खुद के मन को रोशन करने को एक दीप जलाऊंँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract