STORYMIRROR

Aarti Sirsat

Abstract Action Fantasy

4  

Aarti Sirsat

Abstract Action Fantasy

मैं काँटा हूँ, तूँ है गुलाब सा

मैं काँटा हूँ, तूँ है गुलाब सा

1 min
251

"मैं काँटा हूँ, तूँ है गुलाब सा"

मैं काँटा हूँ उस डालीं का, 

तूँ है किसी गुलाब सा....!

मैं रास्ता हूँ कोई वीरान,

तूँ है किसी सुहानी मंजिल सा....!!


मैं टूटा तारा हूँ उस आसमां का,

तूँ है किसी कोरे कागज सा....!

मैं पत्थर हूँ किसी के ठोकर का,

तूँ है किसी मंदिर के भगवान सा....!!


मैं शब्द हूँ उस गणित के उलझनों का,

तूँ है हिंदी के सुंदर शब्दों के अर्थ सा....!

मैं पतझड़ हूँ उस रेगिस्तान का,

तूँ है किसी सावन के महीने सा....!!


मैं रात हूँ उस अमावस्या के काल का,

तूँ है किसी पूर्णिमा के चाँद सा....!

मैं तपन हूँ उस सूर्य की आग का,

तूँ है किसी पेड़ की ठंडी छाँव सा....!!


मैं हौसला हूँ उस टूटे परौं के पक्षी का,

तूँ है किसी प्रतिभागी के जूनून सा....!

मैं बादल हूँ उस उदासियों का,

तूँ है किसी खुशियों के त्यौहार सा....!!


मैं अंधकार हूँ मानव के मन के भीतर का,

तूँ है राधा श्रीकृष्ण के परिशुद्ध प्रेम सा....!

मैं राग हूँ कौएं की कर्कश वाणी का,

तूँ है किसी कोयल के मधुर स्वर सा....!!


मैं काँटा हूँ उस डालीं का, 

तूँ है किसी गुलाब सा....!

मैं रास्ता हूँ कोई वीरान,

तूँ है किसी सुहानी मंजिल सा....!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract