मैं हूँ तरंगिणी
मैं हूँ तरंगिणी
मैं हूँ एक पहाड़ों से आने वाली तरंगिणी,
मैं हूँ जल को प्रवाह करने वाली कारिणी।
मैं हूँ वादियों जंगलों को सुन्दर
बनाने वाली रम्य रानी,
हर जगह बह बहकर जाती हूँ
बनकर अनजानी जीवनदायिनी।
गाँव के खेतों में फैलाती हूँ मैं हरियाली,
मेरे रहने से प्राणियों का जीवन बने निराली।
मेरे हैं कई रूप और कई नाम,
गंगा जमुना सरस्वती गोदावरी
कावेरी महानदी है मेरे कुछ नाम।
हर प्रान्त की हूँ मैं जीवनदी,
मेरे बनते हैं कई उपनदी।
मेरे बहाव को नियंत्रित करना है दुष्कर,
बाढ़ में मेरा रूप हो जाता है अत्यंत भयंकर।
हर नगर जा जाकर बनता है मेरा डगर,
मेरा अस्तित्व लोप पा जाता है
समंदर में समा जाकर।
मैं ही हूँ सबकी तरंगों वाली तरंगिणी,
इस कविता को पढ़कर
समझिए मेरी वाणी ।
