मैं हिंदी हूंँ
मैं हिंदी हूंँ


कवि की कल्पना मैं हूँ।
कबीर ने मुझे चाहा रहीम ने मुझे पोसा ।
मैं खुसरो की पहेली मैं सूर के पदों में हूँ।
गिरधर की कुण्डली में अलंकारो में बसती हूँ ,उपमाओ से सजती हूँ।
मैं हिन्दी हूँ।
तुलसी के दोहो में छन्दो में चौपाई में मेरा स्थान है ऊँचा।
मैं रसखान की भाषा में झलकती हूँ,महादेवी की कविता में।
निराला के साहित्य में छलकती हूँ,।
परसाई के व्यंगो मेंहँसी बन कर खनकती हूँ।
मैं हिन्दी हूँ
हरिवंश की मधुशाला में गुप्त की पंचवटी में मैं हूँ।
प्रेमचंद के उपन्यास के पाञो में जीवन्त हूँ।
व्यंजनो की व्यंजना मे,विषेशण की विशेशता में
मैं सजती हूँ संवरती हूँ मैं गद्यों में मैं पद्यों समाचारों में।
मैं हिन्दी हूँ
मैं ईश्वर की कृपा मे,सरगम के सात स्वरो में हूँ ।
गजलो में ,मैं भजनो में राष्ट्र के गान में मैं हूँ।
मैं हिन्दी हूँ