मैं एक नारी हूँ
मैं एक नारी हूँ


नाजुक सी मैं एक पंखुड़ी
तो कभी कठोर दयार हूं
कभी हूं मैं तूफानी बबंडर
तो कभी झूमती बहार हूं
शबनम सी ठंडक मुझमें
शमां सी जलना आता है
आगोश मेरा पाने को जब
हंसते हुये जल जाता है
जन्मदात्री होकर भी मैं
वजूद को लड़ती नारी हूं
भ्रम जीत का फैला है पर
मैं कदम कदम पे हारी हूं
शाप बना जीवन नारी का
जगह जगह पर मारी हूं
सबसे बडा़ अपराध मेरा
ये हुआ कि मै एक नारी हूं
पैदाइशी मैं वीरांगना पर
धीरज में मुझसा कोई नहीं
तिल तिल मुझको वो जलाऐं
जिनकी खातिर सोई नहीं
मेरा आंचल प्यारा तुमको
मेरी ही अदा तुझको भाये
जब जब मैं आजादी मांगूं
तू पिजड़़ों में रखना चाहे
लक्ष्मी सरस्वती को पूजे पर
साक्षात पर अत्याचार करे
बन संवर जो घर से निकलूं
नजरों से रह रह वार करे
घर की इज्ज़त कहते हैं पर
बाजार में मुझको सजा दिया
कभी छोड दिया चौराहे या
बीबी बना के भगा दिया
अय्याशी तेरी फितरत में
पर ऋषियों सा ढोंग रचाऐ
नारी का तू अपमान करे
कमी भी उसी की बताए
इतना ही सांचाधारी है तो
क्यों तू कोठों पर जाता है
दिन के उजाले ढौंग रचाऐ
रातों को रंगीन बनाता है
तोहमतें हमेशा सहकर भी
मैंने आगे बढना नहीं छोड़ा
हर कदम मेरा रोका तूने
और विश्वास को मेरे तोड़ा
अपना हक जब भी मांगा
तब मैं एक नजर न भाई
लाखों प्रपंच रचा कैद कर
बेड़ियों की सौगात बिछाई
मुझसे रौनक घर बार हैं तेरे
मुझसे ही रौशन अंधियारे
फिर भी सताऐ तरह तरह
और तरह तरह मुझको मारे
भ्रूण से अस्तित्व तलक मेरी
हत्या की फिराक में रहता है
अबला पर अत्याचार कर
अपने को मर्द तू कहता है
निर्भया बन दिल्ली में मारी
हुजूम उभरा था बड़भारी
बदला नहीं आज भी कुछ
भेडिये अब भी वही शिकारी
गोरखपुर, शाहजहांपुर में
या हाथरस में मारी गई
अस्मत मेरी मिलकर लूटी
जुबान भी फिर काटी गई
आरोप अस्तित्व मिटाने पर
छेडख़ानी का बस लिखते हैं
रक्षक मिलकर भक्षकों संग
देखो सरे आम बिकते हैं
हर मौत के बाद जिंदा होती
मैं फिर से आगे बढती हूं
काम को जाती सहमी सी
आतंक के बीच में पढती हूं
लक्ष्मीबाई कभी रण चण्डी
मुझको फिर बनना ही पडा
अताताई था लूटने मुझको
जब भी सामने मेरे खडा
आशा लंता और स्रेया बन
मैंने संसार सुरों से सजाया
कल्पना चावला मैं ही बनी
जब दुनिया में नाम कमाया
बार बार लुटकर भी मैं
फिर से उठ खड़ी होती हूं
भीख दया की मांगू नहीं
किस्मत पर कभी न रोती हूं
लडाई मेरी नहीं किसी से
मुझे तो पहचान बनानी है
है पुरुष भी हमारा पूरक ही
बात तो मैंने ये भी मानी है
रोकेगा मुझको क्या कोई
मैं आसमान छूने आई हूं
हर तूफानी मंजर के बाद
फिर बहार बन के छाई हूं!