मैं बिंदु हूँ
मैं बिंदु हूँ
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मैं बिंदु हूँ
एक जगह ठहरा हूँ
पर वास्तव में
बहुत गहरा हूँ
बिन अंत के मैं
एक सूक्षम चिन्ह हूँ
निश्चित अंत है मेरा
इसलिए भिन्न हूँ
न मेरी है लम्बाई
न ही चौड़ाई
पर संकेत में मेरे
खूब है गहराई
बिन मेरे किसी
दिशा का रूप नहीं
संभव मेरे बिना
कोई स्वरूप नहीं
मैं बिखरता नहीं
रेखाओं की तरह
ठहरा रहता हूँ
पर्वतों की तरह
न जाने रेखाओं को
क्यों, कैसा गुमां हें
मुझे झोड़े बिना क्या
अस्तित्व उनका आसान हैं ?
मैं तन्हा हूँ
पर अनंत हूँ अटल हूँ
मैं पराधीन नहीं
इसलिए सकल हूँ !