मैं भारत हूँ
मैं भारत हूँ
अनगिनते घावों को खाकर,
देखो ! हरा भरा हूँ,
मैं अखण्ड भारत हूँ प्यारे!
किससे कहाँ डरा हूँ!!
भू,नभ, जल की आफत झेली,
है नगेश रखवाला,
देखे कितने युद्ध, सहे पर
डिगा न हिम्मतवाला ।
बलिदानी निज शीश चढ़ाता,
हाँ! मैं वही धरा हूँ!!
बाहर के आघात सहे हैं,
भीतर के भी भारी,
अपनों ने ही चोटें दी हैं,
कुछ ने की मक्कारी।।
सबको सबका जीवन देने,
कितनी बार मरा हूँ!!
हैं अखण्ड आदर्श हमारे,
और सभ्यता प्यारी,
विपदाओं में एक रहें हम,
भले संस्कृति न्यारी।
एक सूत्र में रहे, रहेंगे,
संबल यही खरा हूँ!!
