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Sulakshana Mishra

Abstract

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Sulakshana Mishra

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मैं और मेरा क़ातिब

मैं और मेरा क़ातिब

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दुश्मनी थी न तुझसे मेरी

ऐ मेरे कातिब 

बस तू मेरी खता बता दे


जो न थी स्याही तेरे पास

तो आंसुओं से

लिखने की मेरा नसीब

कोई तो वजह बता दे।


क्यूँ लिख दिए

इतने अंधेरे यूँ मेरे नसीब में

कहाँ ढूँढू मै रौशनी

कोई तो जगह बता दे।


जाती है मेरी नज़र जहाँ तक

बस कड़कती धूप नज़र आती है 

है यकीन 

कि आएगा मंज़र भी सुकून का

बस उस मंज़र की

एक झलक तो दिखा दे।


चलते जाना ही है मेरा नसीब

या मुमकिन है कभी 

मेरी मंज़िल का 

मुझसे कभी मिल जाना भी ?


ऐ मेरे कातिब

है मंज़ूर मुझे सब कुछ

बस एक बार 

तू अपनी रज़ा तो बता दे।


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