मैं - अहम की कहानी
मैं - अहम की कहानी
दौड़ती - भागती ज़िन्दगी की शाम कब हो गई पता नहीं
बचपन से जवानी औ बुढ़ापा कब आया पता नहीं
प्यास कुछ पाने की हर पल जगती रही
जो था उसे अपनाने की फुरसत न रही I
समय का पहिया घूमता रहा
मैं अपनी मैं की चक्की मेँ पिसता रहा
आसान सी ज़िन्दगी को जी न सका
अपनो को मैं पाकर भी पा न सका।
मैं को जीने की खातिर अपनो से दूर होता गया
आज चाह कर भी मैं उनको पाने में असमर्थ हो गया
मैं की हार में ही तुम्हारी जीत छुपी है I
जीवन जीने का असली फलसफा यही है I
मैं से तुम नहीं जब हम बन जाओगे I
जीवन धारा का मीठा जल तभी ग्रहण कर पाओगे I