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Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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माटी को सलाम

माटी को सलाम

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आओ बुने ख्वाबों को धरातल देते हैं  

आंखों में उतारी तस्वीर से रूबरू होते हैं।

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आओ ऐसा भारत बनाते हैं जहां आंखों में पानी हो

पलकें नहीं कभी भारी हो, रंजिशों की नहीं कोई गुंजाइश हो

साज़िशों की भी नहीं कोई साजिश हो।

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यहां कोई जिंदगी कर्ज पर नहीं जीता

किसी के एहसानों तले दबकर नहीं रहता

आत्मनिर्भर बनने पर फक्र करता है

हिंदुस्तान की माटी को सलाम करता है।


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