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Dhan Pati Singh Kushwaha

Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Inspirational

मातृ स्नेह अमूल्य उपहार

मातृ स्नेह अमूल्य उपहार

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मात्र मातृ का नाता है अनूठा,

जग के हर नाते से निराला है।

नौ माह सतत् ही निज लहू से

जिसने,हमें सींचकर पाला है।


नौ मासों की इस अवधि में न

जाने होते कितने उतार-चढ़ाव।

मां के सानिध्य में सदा सुरक्षित,

न कुछ भी होता है हमें अभाव। 


हमको जग में लाने हित मां ही,

दांव पर निज जान लगाती है।

पा हमें लगाती तुरत वक्ष से,

सब पीड़ा प्रसव की भुलाती है।


गीला बिस्तर करते दोनों ओर तो,

मां निज पेट पर ही हमें सुलाती है।

हम तक आने वाली हर बाधा के,

रास्ते में ही अडिग खड़ी हो जाती है।


हमारे उन्नयन हित है बहु कष्ट उठाती,

वह रंच आलस तो न कभी दिखाती है।

जग की नजरों से करने को सुरक्षित,

सदा भाल पर टीका काला लगाती है।


हम चाहे जितने भी बड़े हो जाएं लेकिन,

ठीक से रहने की चिंता उसे सताती है।

प्रमाण प्राकृतिक जुड़ाव का यही दर्द में,

"मां" तो ही हर एक चीख में आ जाती है।


बाकी रिश्तों में स्वार्थ हो सकता है संभव,

पर मां का रिश्ता सदा नि:स्वार्थ ही होता है।

मां की ममता होती है सबसे ज्यादा अनूठी,

अखिल जगत ही यह आदिकाल से कहता है।


अगणित कृपा प्रभु की होती है हम सब पर,

मातृ-स्नेह है इनमें अमूल्य प्रभु का उपहार।

मां के ऋण से कोई कभी न उऋण हो सकता,

चाहे कोई जीत ले सारा का सारा ही संसार।


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