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Bindiyarani Thakur

Abstract

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Bindiyarani Thakur

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माता पिता की सेवा करो

माता पिता की सेवा करो

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जब से आए इस दुनिया में 

सबकुछ अपने आप मिलता गया

हाथ में रोटी माँ ने थमायी

पिता ने तन ढांपने को वसन दिया

असीम प्यार और दुलार से 

हमारा बचपन खुशहाल किया

कभी कोई इच्छा न थोपी हमपर

किसी चीज के लिए ना मजबूर किया 

इनसब बातों ने हमें आलसी बनाकर 

निखट्टू, निकम्मा और नाकारा किया

बूढ़े होते जा रहे हैं माता- पिता 

उनको ना इक पल को हमने आराम दिया

दिन रात वो खटते रहते हैं 

बेटा आवारागर्दी करता है

थक चुकी है वो जर्जर काया

फिर भी हमको फर्क कहाँ पड़ता है

उनके बलिदानों को कब समझा 

कब उनकी परवाह हमने की

वाह रे कलियुगी संतान 

तेरे जाऊँ बलिहारी,तेरी सदा हो भली

अब भी कद्र कर ले उनकी

वरना बाद में पछता भी नहीं पाएगा 

छोड़ के गर वो चले जाएँगे तो 

कौन तेरे नाज नखरे उठाएगा

जीते जी सेवा कर लो उनकी

कदमों में उनके जन्नत है

मात-पिता की सेवा कर ली तो

देवता पूजने की क्या जरूरत है।।


 



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