मासूमियत का शिकार
मासूमियत का शिकार


मेरे घर रानी बेटी आई है,
मेरे घर लक्ष्मी आई है।
भैया ने फूलों की तरह प्यार किया,
दादी ने पारियों की तरह दुलार दिया।
ये खूबसूरत दुनिया दिखाई मां-पापा ने मुझे,
लाकर दी हर खुशियां जन्नत की भैया दीदी ने मुझे।
वाकिफ नहीं हूं अभी दुनिया की सच्चाई से,
एक झूठी दुनिया कर रही है
इंतज़ार मेरा पीछे इस अच्छाई के।
हाँ, वो दरिदंगी वो हैवानियत
कर रहा है इंतज़ार मेरा,
कब मैं भी निकलूं अपने घर से
और हो बलात्कार मेरा।
आज एक दीदी का बलात्कार हुआ
पढ़ा मैंने अखबार में,
कुछ ने हँस के कहा गलती होगी
उसके छोटे परिधान में।
माना उस दिन उसके छोटे कपड़ों की बात को,
में तो अभी बच्ची हूं कोई बता दे मेरे गुनाह को।
सुना है मां अपने बच्चों की
मन की बात जान जाती है,
आज चीख़ रही है तेरी गुड़िया
तू आके क्यों नहीं बचाती है।
याद है वो दिन जब मैं साइकिल से गिर गई थी,
बिलख उठे थे पापा लगा कि
उनकी जान निकल गई थी।
आज हर रूह कांप रहा है मेरा,
अंकल बता दो ना क्या कसूर है मेरा।
दिल से आवाज आई तू लड़की है सहना पड़ेगा,
आज बच गई तो कल किसी और दरिंदे से लड़ना पड़ेगा।
कहते हैं लोग अपनी बेटियों को खूब पढ़ायेंगे,
ये अंकल हमें छोड़ेंगे तभी तो हम स्कूल जाएंगे।
कल ही तो भैया ने ये वाली फ्रॉक मुझे
अपने हाथों से पहनाया था,
कल भी मैं आठ साल की थी पर उनके मन में तो
यह घिनौना खयाल ना आया था।
आज तो तुम्हरा मन भर गया होगा मुझसे,
जाओ पता करो कोई और पापा की लाडली
निकली होगी अपनी मां के गर्भ से।