मासूम आँखें
मासूम आँखें
खिड़की से तकती है वो आँखें
वो वीरानगी और सुनसान सड़के
क्या होगा हम बच्चों का भविष्य
अपना आने वाला कल खोज रही आँखें
क्या बचपन घर में ही बीत जाएगा
यहीं सोचकर मासूम झरोखें से झाँखें
क्या समझाना चाह रही है प्रकृति
क्या दे रहा है ईश्वर कोई दस्तकें?
याद आती है बहुत वो पाठशाला
वो दोस्त, वो मस्ती, वो किताबें
बड़ों के बुरे कर्मो की सजा की
हम मासूम चुका रहे है कीमतें।