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Lakshman Jha

Tragedy

4  

Lakshman Jha

Tragedy

" मार्ग दर्शक "

" मार्ग दर्शक "

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399



कोई सुने या ना सुने ,हम कुछ बात कह लें !

कोई समझे या ना समझे ,थोड़ी सी कोशिश तो कर लें !!

बातों को अब लेखनियों ,में ही हम कह सकते हैं !

कान तो खुले हैं अपने पर ,मुँह पर मास्क लगे रहते हैं !!

घोषणाएं सुनने के लिए ,कान खुले रहने चाहियें !

मौत का तांडव देखने के लिए ,आँखें खुलीं रहनी चाहियें !!

लाखों के जनाजों को गंगा ,के धाराओं में बहते देखा !

कई लावारिस लाशों को ,यहाँ हमने फेंकते देखा !!

देखने और सुनने के सिवा ,और नहीं कुछ कर सकते हैं !

इसी तरह रह- रह के हमसे ," मन की बात " वे करते हैं !!

" मैक इन इंडिया "और नारों को,ये सिर्फ हमको कह रहे हैं !

अब " आत्मनिर्भर भारत " का ,सपना लोगों को दिखला रहे हैं !!

स्वास्थ्य सेवाओं की व्यवस्था ,का हाल ही बेहाल है !

लोगों को दावा ,इलाज और ,सुई भी मिलना मुहाल है !!

मुँह हमारे बंद हैं और हम ,सिर्फ हठधर्मिता को देखते हैं !

सेवा नहीं है लक्ष्य कोई ,दुख ही दुख केवल बाँटते हैं !!

एक जैसा दिन किसी का ,इतिहास में किसका रहा है !

" मार्ग दर्शक " का कमरा ऐसे ,लोगों का इंतजार वर्षों से कर रहा है !!


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