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राजेश "बनारसी बाबू"

Inspirational

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राजेश "बनारसी बाबू"

Inspirational

मानवता पर व्यंग्य टिप्पणी

मानवता पर व्यंग्य टिप्पणी

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आज जब धरा पर कोरोना

पर्यावरण विपदा जब मै देखता हूंँ?

तब तब मैं मानवता पर व्याकुल हो जाता हूंँ।

जब-जब यह विपत्ति आई है,

तब तब मानवता ने ही साथ निभाया है।

यह कैसी घड़ी आई है ?

हमें मानवता पे शर्म आई है?

वह बात ही कुछ और थी ?

वह दौर ही कुछ और हुआ करते थे?

जब एक मानव की सेवा में 

हम मानव अपना ही जीवन त्याग देते थे।

लोग कहते हैं वह कल कल था।

और यह आज तो कलयुग है।

आज अपने ही परिवार के लोग 

अपने परिवार के शव को ना

पहचान रहे।

सफर मैं भी ऐसे चलते की किसी

को नहीं पहचानते।

आज दहेज के बल पर बहू बेटियां

खरीदी जाती है।

उघड़े वदन और भद्दे नृत्य पार्टियां

भी की जाती है।

जो मांँ बाप बच्चे को जन्म देते हैं,

जमीन जायदाद के लिए आज

उनकी हत्या की जाती है।

ऐसी मानवता पर हमें आज शर्म

आई है?

कुदरत यह तूने कैसा हमे झलक

दिखलाई है?

आज हमें मानवता पर बहुत ही

तीव्र शर्म आई है।

जब जब भी संकट आया है ?

हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई ने साथ निभाया है।

लेकिन आज ही देखो यह मसला क्या सामने आया है?

आज हिंदू मुस्लिम धर्म के लिए

लड़ रहे हैं।

मंदिर और मस्जिद के लिए एक

दूजे को आंँख दिखाया है

मानवता का अर्थ एक दूजे की

खुशी के लिए मिट जाना है

मानवता का मतलब यह नहीं

आपस में एक दूजे का खून

बहाना है।



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