STORYMIRROR

Nisha Nandini Bhartiya

Abstract

3  

Nisha Nandini Bhartiya

Abstract

मानव की यात्रा

मानव की यात्रा

1 min
311

रहकर गुफाओं में 

आग जला पत्थरों से  

शिकार कर पशुओं का

करता मांस भक्षण। 


ढक लेता तन-बदन को 

वृक्षों की कड़ी छाल से 

सच्चा साथी प्रकृति का         

था ऐसा आदि मानव।


क्या पाया तुमने सभ्य होकर

प्राचीन संस्कृति खो कर

जंगलों को काट कर

पशु-पक्षियों को सता कर।


हवा-पानी खो कर

सांस अपनी रोक कर

वन-पर्वत काट कर

धरती को रुला कर।


रोबोट बन दौड़ रहे 

बीमारियों से घिर रहे 

घर द्वार छोड़ रहे 

शुद्धता खोज रहे।


प्रेम की प्यास लिए 

अपनत्व को तरस रहे 

नवयुग की बन मशीन

दिन रात पीस रहे। 


बहुत दौड़ भागकर 

चांद पर पहुंच गए 

अधूरी चाह लिए            

भटक रहे इधर-उधर। 


पंच तत्वों को जीतने की 

जद्दोजहद में 

स्थिरता खो कर             

विक्षिप्ता पा गए। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract