'मानस'
'मानस'
नित्य मानस को पढ़ो, गुनगुनाओ।
टेर, पपीहा से सीखो, स्वाति जल पाओ।
सच्चे हृदय से करो प्रभु राम की भक्ति।
वे ही भजन करने की देंगे शक्ति।
केवल पुरुषार्थ तेरा काम ना आवेगा।
प्रभु से नेह कर, उनकी कृपा पावेगा।
उन्हीं का नाम जप, जीवन सुखमय बना।
संसार तो निस्सार है, कोरा सपना।
हो जा सरल, सरलता उन को भाती है।
बनावट तो हमें, प्रभु से दूर भगाती है।
अपने दोष सब, प्रभु की अर्पण कर दो।
समझ कर अल्पज्ञ अपने को,
समर्पण पूर्ण कर दो।
मेरे रघुनाथ, सुना है दीनों के नाथ है।
जिनका कोई नहीं वे करते सनाथ है।
हमें भी आशा है, कृपा उनकी बरसेगी।
हमारी जिंदगी एक बार फिर महकेगी।
