माँ
माँ
एक ही शब्द काफी है परिभाषित करने के लिए,
पुत्र का प्यार ही है उसे सुशोभित करने के लिए।
बिन कहे ही समझ जाती वो दिल की हर बात,
अपने आँचल मे वो कर लेती सबको आत्मसात।
जिसकी वंदना करे सृष्टि के ब्रम्हा विष्णु महेश,
वो कैसे कर सकती है घर मे कोई क्लेश।
उसके बिना लगे घर आँगन हमेशा सूना,
उसके होने से ही खुशियाँ हो जाती दूना।
हमेशा रक्षा करती उसकी दुआएँ बन मजबूत ढाल,
जब भी कोई बलाएँ हो पड़ती आन।
हर मुश्किल का हँस कर लेती सामना,
ना कभी रखे वो मन मे कोई दुर्भावना।
जिसका संबल ही हो पुत्र का आधार,
जिसके संस्कार, चरित्र और हो उच्च विचार।
उस देवी को करता हूँ नमन बारंबार,
उसके चरणों मे अर्पित धवल पुष्पहार।