माँ
माँ
मैं कोई नहीं जो कलम में बाँध लूँ प्यार माँ का,
मैं कोई नहीं जो बखान पाऊँ दुलार माँ का।
माँ तो वो है जिसको ख़ुदा भी स्वयं माँग बैठा,
पाने माँ की ममता वो स्वयं भी माँ की गोद में आ लेटा।
कहने को पूरी किताब लिख दूँ माँ के नाम,
किंतु काग़ज़ भी छवी माँ की ही दिखाता है।
स्याही भी रो देती है वहाँ,
जहाँ माँ तेरा नाम आता है।
भूख-प्यास तो हर कोई क़ुर्बान करता है,
माँ तो स्वयं अपना जीवन क़ुर्बान कर देती है।
तेरे आँचल की ये छाँव माँ,
मेरे हर घाव को भर देती है।
अंबर सी विशाल ममता तेरी,
ताउम्र प्रेम की वर्षा करती है।
माँ तेरे कदमो में मुझे,
मेरी सारी दुनिया दिखती है।
