शीर्षक :-ईश्वर अगर मैं होता
शीर्षक :-ईश्वर अगर मैं होता
ईश्वर अगर मैं होता,
शायद केवल ये एक सपना होता,
किंतु अगर सपने में भी ये मौका मिला होता,
तो ख़्वाब के टूटने तक का,
मेरा सफर कुछ इस तरह होता।
ईश्वर अगर मैं होता,
मैं न ही दुःखों को कम करता,
मैं न ही सुखों की वृद्धि करता,
मैं न ही ख़ुशीयों को बढ़ाता,
मैं सव्यं भी वो ही कार्य करता,
मेरा खुदा जो अब तक है करता।
ईश्वर अगर मैं होता,
मैं भी सबको अपने कर्मो का फल देता,
मैं भी मानव की बुराई को नाप लेता,
मैं भी मानव की अच्छाई को भाप लेता,
मैं भी सदाचारी जनों की कठिन परीक्षा लेता,
मैं भी उनके मेरे उपर के विश्वास को परखता।
ईश्वर अगर मैं होता,
मैं न ही कोई सुविधा को बढ़ाता,
मैं न ही दुविधा को कम करता,
मैं न ही कोई पक्ष-पात करता,
मैं न ही उस खुदा के औदे की तौहीन करता,
मैं न ही आपको समझा पाता।
ईश्वर अगर मैं होता,
मैं भी उसके राज गुप्त रखता,
मैं भी खुदा को खुदा बनाएँ रखता,
मैं भी फिर खुदा से मानव बनने की चाह रखता,
मैं भी मनुष्य जन्म के लिए राम-कृष्ण के भाती तड़पता,
मैं भी माँ यशोदा की गोद में ईश्वर के तरह लाल बनने को तरसता,
मैं भी खुदा का कार्य सपने में भी ना कर सकता,
मैं भी रब बनकर रब को ना समझ सकता।
