कही खो सा गया हूँ मैं
कही खो सा गया हूँ मैं


क्या से क्या हो गया हूँ मैं,
जो न था वो क्यूँ बन गया हूँ मैं।
शायद ख़ुद में ही गुम हो गया हूँ मैं,
पता नहीं क्यों कही खो सा गया हूँ मैं।
क्यूँ ख़ुद को ही मिल न पा रहा हूँ मैं,
सोचकर भी क्यूँ सोच न पा रहा हूँ मैं।
शायद स्वयं का ही रास्ता भटक गया हूँ मैं,
पता नहीं क्यों कही खो सा गया हूँ मैं।
देखकर भी क्यूँ न देख पा रहा हूँ मैं,
कोशिश करने पर भी क्यूँ न समझ पा रहा हूँ मैं।
तलाश स्वयं कि ही पूर्ण क्यूँ न कर पा रहा हूँ मैं
पता नहीं क्यों कही खो सा गया हूँ मैं।
चाहकर भी क्यूँ कुछ न चाह पा रहा हूँ मैं,
लौटकर भी क्यूँ न लौट पा रहा हूँ मैं।
चलकर भी क्यूँ न चल पा रहा हूँ मैं,
पता नहीं क्यों कही खो सा गया हूँ मैं।
जो दिल में है क्यूँ ज़ुबान से बोल न पा रहा हूँ मैं,
कल जो था आज क्यूँ न बन पा रहा हूँ मैं।
मैं ही क्यूँ मैं नहीं बन पा रहा हूँ मैं,
पता नहीं क्यों कही खो सा गया हूँ मैं।