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Suraj Dixit

Abstract

4  

Suraj Dixit

Abstract

कही खो सा गया हूँ मैं

कही खो सा गया हूँ मैं

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क्या से क्या हो गया हूँ मैं, 

जो न था वो क्यूँ बन गया हूँ मैं।

शायद ख़ुद में ही गुम हो गया हूँ मैं, 

पता नहीं क्यों कही खो सा गया हूँ मैं।


क्यूँ ख़ुद को ही मिल न पा रहा हूँ मैं, 

सोचकर भी क्यूँ सोच न पा रहा हूँ मैं।

शायद स्वयं का ही रास्ता भटक गया हूँ मैं, 

पता नहीं क्यों कही खो सा गया हूँ मैं।


देखकर भी क्यूँ न देख पा रहा हूँ मैं,

कोशिश करने पर भी क्यूँ न समझ पा रहा हूँ मैं।

तलाश स्वयं कि ही पूर्ण क्यूँ न कर पा रहा हूँ मैं

पता नहीं क्यों कही खो सा गया हूँ मैं।


चाहकर भी क्यूँ कुछ न चाह पा रहा हूँ मैं, 

लौटकर भी क्यूँ न लौट पा रहा हूँ मैं।

चलकर भी क्यूँ न चल पा रहा हूँ मैं, 

पता नहीं क्यों कही खो सा गया हूँ मैं।


जो दिल में है क्यूँ ज़ुबान से बोल न पा रहा हूँ मैं,

कल जो था आज क्यूँ न बन पा रहा हूँ मैं।

मैं ही क्यूँ मैं नहीं बन पा रहा हूँ मैं, 

पता नहीं क्यों कही खो सा गया हूँ मैं।


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