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Renuka Chugh Middha

Abstract

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Renuka Chugh Middha

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माँ

माँ

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माँ ही जननी, माँ ही सृष्टि है, 

माँ ही विधात्री जीवन की है,

मातृ शब्द है बड़ा प्यारा, इस में ही तो समाया ब्रहमांड सारा है 


मां से जग है, मां से हम हैं,

उदभव करती, पालन करती है,

मां की लोरी ... हमें हंसाती, अंतर्मन को झंकृत करती है  


मदालसा बन ऋषि पुत्रों को,

मुक्ति का राह दिखलाती है, 

सीता बनकर, लव कुश को है, जीवन जीना सिखलाती है  


शिवाजी को मां जीजाबाई,

रण कौशल सिखलाती है

शूरवीरों की जननी मृत्यु 

से जीवन लाना सिखलाती है


 मां की कोख से पैदा 

होकर राम कृष्ण भगवान बने 

 महाभारत के वीरो को,

मां ही करती बलवान बड़े


मां तू धरती, मां तू अंबर,

सारी जगती, तुझसे है

तेरे ही गुण, लेती कुदरत,

कई रूपों को धरती है


हे मां ... तुझमें तो,

संसार बदलने की शक्ति है

भारत मां की, लाज बचाते,

वीरों की तूँ जननी है


भारत की सँस्कृति  का 

वैभव है तू है, मात मेरी

"जननी जन्मभूमि स्वर्गादपि गरीयसी" 

को सच करती है तू मात मेरी


तेरे माता, मैं क्या गुण गाऊं,

गुण लेते, तुझ से आभा, 

दिग दिगंतर में, शोभा तेरी,

तुझ बिन तो, कुछ भी ना होगा।


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