माँ
माँ
माँ
हृदय की पीड़ा किसे सुनाऊँ
छोड़ के मुझको चली गई हो
माँ
अंतर्मन की वेदना, जनमानस की चेतना
सब कुछ जगाकर चली गई हो
माँ
विशाल मन प्रांगण है तेरा
दया क्षमा का बना बसेरा
दूध की एक एक बूंद का ऋणी मैं
क्यों सबने तुझे बाजार दिया
फिर भी तूने पत्नी बनकर
मर्दो के चरणो को छुआ
दूध सी चाँदनी में नहला कर चली गई हो
माँ
मेरे क्षणिक दुख के पल भी
कितने विचलित करते तुम्हारे मन को
अटल गहरा मन तुम्हारा
थाह कोई क्या पाया
सहेज सहेज कर अधरो पर हमारे
मुस्कान बिखेर कर चली गई हो
माँ
तुमसे वायदा किया था मैंने
कल संबल बनने का
बागडोर अपने हाथो में लेकर
कुछ ऋण कम करने का
मैं भटक गया, तुम मुस्कुरा कर बोली
पगले, कोई बेटा ऋणी नहींहोता
कर्तव्य निभाने का संदेश देकर चली गई हो
माँ
विराट वृत में एक चेहरा ऊभरकर आता है
एक नन्ही कली का चित्र
धीरे धीरे बड़ा होता चित्र
बेटी से बहन, बहन से पत्नी बनने का चित्र
फिर सर्वोच्च पद पर विराजमान होता चित्र
हाँ हाँ वह चित्र माँ बन गया
माँ
चली गई पर अमर है
यह विश्वास दिला कर चली गई
माँ
चली गई