Ragini Uplopwar
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प्रातः से शाम तक
उत्साह पूर्वक अपनी खोज में
निकले हो तुम
दिन भर पसीना बहाकर
शाम को कुछ उदास नजर आते हो तुम
अपनी आकांक्षाओं के "पर "
पैरो से क्यों काट कर नहीं फेकते हो तुम
आखिर कब तक
परिक्रमा करते रहोगे तुम
मेरी बिटिया
माँ
पराधीन मैं
गर हो जाऐ बार...
सूर्य