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Ragini Uplopwar

Others

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Ragini Uplopwar

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पराधीन मैं

पराधीन मैं

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हे मानव,

पिंजरे में बंद कर तुमने पूछा

कैसे हो

"मेरी आँखो में झाँको और जान जाओ"

लाल मिर्च और भीगे चने

खिलाकर तुमने पूछा

इतना अच्छा खाना कभी मिला

यह तुम्हारा अहम बोला

मेहनत किये बिना खाने का क्या मजा

पिंजरे में जीना

मौत से भी बदतर होती है सजा

मेरे फड़फड़ाते पंखो की उड़ान तुमने छीनी।

मेरे खिलखिलाते होठो की मुस्कान तुमने छीनी।

प्रकृति भ्रमण की कामना सब सपने तुमने छीने,

अब परदेशी भाषा सीख रहा हूँ मैं

तुम्हारी दी सांसो पर जी रहा हूँ मैं

तुम्हारे बच्चो के खुशी के खातिर

मिठ्ठू मिठ्ठू बोल रहा हूँ मैं,

इस आस के साथ किसी दिन

पिंजरे का दरवाजा खुलेगा

मेरा खुला आकाश मुझे मिलेगा

भगवान से यही दुआ कर रहा हूँ मैं।


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