माँ
माँ
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बहती नदिया की धार है माता
जो पार उतारे पतवार है माता
निश्छल निस्वार्थ प्यार है माता
हमारे लिए तो संसार है माता
नो महीने उनसे कोख में पाला
खुद को भूलकर हमे सम्भाला
दुनिया न बुरी नजर लग सकी
वो गाल पर लगाया टीका काला
सारी दुनिया का दुलार है माता
हमारे लिए तो संसार है माता
बाहों के झूले में था हमें झुलाया
माँ खुद जागी और हमे सुलाया
दुनिया ने जब जब था रुलाया
मेरी माँ ने तब तब मुझे हँसाया
हर एक खुशी का सार है माता
खुशियों का ही संसार है माता
सीने से लगाकर दूध पिलाया
खुद भूखी रही हमे खिलाया
आँखों वाले भी देख सके न
अपनी आँखों संसार दिखाया
करती बच्चों को लाड़ है माता
खुशियों का ही संसार है माता
माँ की महिमा जगत है गाता
माँ के चरणों मे शीश झुकाता
मैं लिखू माँ पर मेरी उकात नही
बस धरम तो कवि धर्म निभाता
मेरे भारत का संस्कार है माता
खुशियों का ही संसार है माता।