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Chandresh Kumar Chhatlani

Inspirational

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Chandresh Kumar Chhatlani

Inspirational

माँ - सृष्टि की प्रथम दीप्ति

माँ - सृष्टि की प्रथम दीप्ति

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माँ ही है ऊर्जा, अमृत की वह छाया,
वेदों का सार, ऋषियों की अभिलाषा।
उसके आँचल में बैठ पढ़े जब भी मन,
हर अक्षर में झलके ईश की भाषा।

नीम नहीं, वह तो अमृत की इक बूँद,
जो हर ज़ख्म पर चुपचाप मलहम है रखती।
बिन उसके धूप अधूरी, छाँव अधूरी,
वह स्वप्नों की चादर, वह आकाश है रचती।

धरती से जुड़ी, पर गगन से भी ऊँची,
उसकी ममता पर्वत से भारी लगे।
नयनों में उसके अनंत का प्रतिबिंब,
उसकी वाणी में ही तो ब्रह्म ध्वनि जगे।

बिन माँ के जीवन जैसे टूटा साज़,
माँ ही वह राग, जो जोड़ता स्वर सारे।
उसका कोमल स्पर्श हो जैसे वसंत,
जिसमें खिलते जाते सपनों के सितारे।

ईश्वर ने माँ को बनाया है अपना रूप,
क्योंकि वह हर घर में पहुँच न सका।
माँ की दुआओं से ही दीप जले मेरे,
उसके विश्वास से ही जीवन चमका।

वह ममता की आंख, ऊर्जा की भी है लहर,
सिंहनी सी गरजे, फिर भी कोमल अपार।
"मातृ देवो भव" नहीं, वह स्वयं है देवता,
जिसकी धूल में छिपा, है ज्ञान का विस्तार।

प्रेम का सागर, उसकी ममता भरी गोद,
जिसमें डूब के भी मिले है अमृतधारा।
वह सिर्फ़ सहेली नहीं, वह काल की धुरी,
जो हर परीक्षा में देती है मुझे सहारा।

हर स्त्री में जलती है माँ की कोई किरण,
उससे ही तो सजा यह पूरा संसार।
मैं जो कुछ भी हूँ, उसी मिट्टी की गंधभ,
जिसमें माँ की तपस्या की सुवास है हर बार।

उसकी शिक्षा, घास जैसी, जो झुकती,
पर जड़ों से जुड़ी रहती अडिग सदा।
बिन माँ के मैं अधूरा गीत, अधूरा स्वप्न,
उसकी उपस्थिति ही रहे, हर क्षण सदा।

जब तक न हुई माँ, अपूर्ण थी सृष्टि,
देवों के हाथों में था बस शून्य स्वरूप।
जब शतरूपा ने बजाई सृष्टि-वीणा,
तब ही गूँजा समय का संगीत अनूप।

माँ की गोद, बरगद की वह गहरी है जड़,
जो बाँधती भी, और करती मुक्त भी।
गांधी हो, लिंकन हो या टेरेसा महान,
हर युगपुरुष की प्रेरणा रही माँ से युक्त ही।

ओ माँ!
तेरे चरणों में झुकता है सूरज हर रोज़,
तेरे आँचल में चाँद भी पाता है ओज।
तू ही धरती, तू ही अंबर, तू ही श्वास,
जिसे कहते हैं ज्ञानी, जीवन का अंतिम प्रकाश।


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