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BIKASH KUMAR PANIGRAHY

Classics

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BIKASH KUMAR PANIGRAHY

Classics

माँ की ममता

माँ की ममता

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हर गम हर शिकवे को वो ऐसे भूला देती है,

रूठती रहती है माँ पर खाने को बुला देती है।


बड़ा सुकुन मिलता है वो मंज़र देखके मुझे,

जब चाँद दिखा कर बच्चे को माँ खिला देती है।


दुआ करती है हर रोज़ की मैं कामयाब बन जाऊं,

घर से निकल पड़ता हूँ तो रोती है और रुला देती है।


ग़ज़लों की धुन में ये महसूस होता है सदा,

की जैसे लोरी सुनाकर मुझे माँ सुला देती है।


काँधे पे सर रखता हूँ उसकी तो हर गम भूल जाता हूँ,

जहाँ में होता हूँ पर वो मुझे जन्नत से मिला देती है।


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