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Amrita Shukla

Abstract

3.3  

Amrita Shukla

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मां काआँचल

मां काआँचल

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मां आंचल की छांव देकर
ममता बरसाती है सब पर
हर दुख हंसकर सहती जाती
उसके होने से घर लगता घर

स्वयं के बारे में कम सोचती
हरदम बस खुशियां बिखेरती
सबको देने का भाव निहित है
प्रकाशित कर देती बन ज्योति

घर में किसी का, कोई सपना
उसे मान लेती है वो अपना
त्याग देती अपनी इच्छाओं को
ध्येय सबको साथ लेकर चलना

जब उम्र का कारवां बढ़ता है
बालों में सफेदपन झलकता है
सभी अपने मुकाम पा जाते हैं
समय रफ्तार से चलता है

फिर वो अकेली हो जाती
राह देखती आए कोई पाती
गुम होती अतीत के पलों में
रह रहकर आंखें भर आती

थोडा़ ठहरो,समझो और गुनो
वक्त की आवाज को सुनो
रिश्ते, प्यार की पुकार है
इनसे ही जिंदगी को बुनो

गए हुए पल लौटकर न आएंगें
जो हैं आज वो कल चले जाएंगे
साथ रह लो जी भर कर  उनके
बाद में उन्हें सिर्फ यादों में पाएंगें


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