मां है वृक्ष समान
मां है वृक्ष समान
वृक्ष व्यथित नहीं होता
धरा चाहे जितनी कुपित हो
वृक्ष व्यथित नहीं होता
कितने फूल गिरे शाखों से
वो हरपल ही सृजन करता
माना पतझड़ का मौसम है
पर बसंत फिर से आयेगा
नई कोपलें फिर फूटेंगी
भविष्य राह दिखायेगा
साहस भरकर रात को सूरज
सुबह फिर से आयेगा
जो फैला है घना अंधेरा
पल में दूर हो जायेगा
कोयल कूकेगी बागों में
वृक्ष पुलकित हो जायेगा
जीवन की इस बगिया में
जब शोहरत का परचम लहरायेगा।
