माॅं
माॅं
अपने बच्चों को मुस्कुराता देख..
मुस्कुराती है माँ !
दर्द हो कोई तो अश्क़ आँखों से..
बरसाती है माँ !!
थाम कर उँगली बच्चे की..
हर कदम पर चलना सिखाती है माँ !
गिर जाए बच्चा कँही तो..
सबसे पहले उसे उठाती है माँ !!
माँ तो माँ होती है..
बच्चों में इसकी जान होती है !
चार दीवारों के मकान को..
घर बना कर सजाती है माँ !!
ख़ुद कभी जो परेशान हो तो..
सबसे अपना हाल ए दिल छुपाती है माँ !
बच्चे की हर मुश्किल को..
पलभर में आसान बनाती है माँ !!
ऐसी निस्बत किसी..
और रिश्ते में कँहा दिखती है !
अपने बच्चों की ख़ातिर..
काँटों भरी राह से गुज़र जाती है माँ !!
जब कोई मुश्किल हो ओर..
घबराता है ये दिल तो याद आती है माँ !
जिसके गोद में सिर रखने से..
सूकून आजाता है ऐसी होती है माँ !!
जन्नत क्यूँ ढूँढते हैं लोग..
माँ के कदमों में ही मिल जाती है असली जन्नत !
बच्चे की हर ख्वाहिश हर ख़्वाब..
अपनी आँखों में बसा लेती है माँ !!
तेरी शान में माँ..
सिर्फ इतना कह सकते है,
तेरी ऊंचाइयों के सामने..
आसमान भी टिक सकता नहीं !!
इस नज़्म से मेरा सिर्फ..
इतना सा एक पैग़ाम है,
ए माँ .....तुझे मेरा..
सर झुका कर सलाम है !!