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Dhruvesh Jain

Romance

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Dhruvesh Jain

Romance

लव...

लव...

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इश्क क्या है यह तो नहीं जानता

पर तुझसे बेइंतहा मोहब्बत करना चाहता हूं मैं

खुद से पहले तेरी सलामती की दुआ करता हूं मैं

 

यूं तो कभी रब को याद नहीं किया

पर तेरी परवाह करना ही मुकद्दर समझता हूं मैं

 

दिल की कैद से ना रिहाई तेरी होती है ना मेरी होती है

फिर भी दिल की अदालत में जब भी चला है मुकदमा

पहले सुनवाई तेरी होती है

 

इश्क ए मोहब्बत को तो बयान करना मुझे आता नहीं

कमबख्त ये तो वो बुखार है जो एक बार हो जाए तो जाता नहीं

 

जज्बातों का एक ऐसा समन्दर जो कभी किनारों को पाता नहीं

फिर भी किनारों को पाने का इरादा दिल से कभी जाता नहीं

 

न जाने क्यूं ये आंखे इतनी खामोश रहती हैं

खुशबू छुपी है जिस हवा में तेरी बस उसी के संग बहती है

 

सुबह शाम बस तेरी फिक्र करती है

कुछ पूछो इससे तो सिर्फ तेरा जिक्र करती है

न जाने क्यूं ये तुझ ही पर मरती है

 

तुझे खो देने के ख्याल से भी डरती है

खुली रहे इस दिल के लिए तेरी बांहें हर पल

हर पल बस यही आहें भरती है

 

ओह मेरी प्यारी सी बच्ची

तू क्यूं मुझसे इतना झगड़ती है

मेरी फूल सी बच्ची बेवजह ही मुझसे लड़ती है

 

जब भी तेरी बहुत याद आती है

अपनी ही बाहों को जोर से जकड़ लिया करता हूं

तेरी गैर मौजूदगी में खुद से ही बातें कर लिया करता हूं

 

हौले से ‘बेबी सो गया क्या’ कहकर गुड नाइट किस दे दिया करता हूं

और फिर थोड़ा सा मुस्कुराहकर मैं भी सो जाया करता हूं।

 


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