लफ़्ज़ अनकहे
लफ़्ज़ अनकहे
ये मत सोचेगा की हम मायूस है।
हमारा तो लहजा ही कुछ ऐसा हो गया है
लिहाज़ हमें सिर्फ रिश्ते का है
जो एक इनायत है जन्नत जहान की है।
वर्ना रफ़्तार से हमारे बा दस्तूर
अल्फाज़ों की बारिश में आपको भीगना पड़ता है।
बड़ी रूहानियत से मुहब्बत की खिदमत की है
बस, इस जुस्तजू में की एक लम्हा सुकून का मिल सके
जहां मुलाकात सिर्फ एक एहसास ना हो पर एक हकीकत हो।
मयस्सर तो हम किस लिए कभी भी ना थे
किस्मत से कुर्बत हुई है, शायद ही कोई इतना खुशनसीब होता है
इसलिये नसीब को और आजमाना नहीं चाहते।
वरना इस नूर के दीवाने कई सारे आज भी खड़े है
कतार में बाहें फैलाए,
कमबख़्त एक हम है जो नवाजिश से सिर्फ किसी के अल्फाजों के
एक एक हर्फ को इश्क का घूंट समझ के हौले हौले पी रहे है
वर्ना प्यार का समंदर ज्यादा दूर नहीं !!!
तकल्लुफ़ उन्हें ना हो बस इसलिये रुके खड़े हुए हैं!!!