मेरी अजीब सी दोस्त
मेरी अजीब सी दोस्त
अजीब सी दोस्त है मेरी,
हमेशा कुछ ना कुछ उलझन में रहती है,
ख़ुद ही एक उलझन है और उलझन का हल बी वो खुद ही है,
नफरतो के दरिया में मोहब्बत की कश्ती लेके
सुकून के साहिल पे जाना चाहती है,
फिर भी खुद के हौसले पर भरोसा है उसे,
अमवास की रातों में चांदनी को ढूंढती है,
अकेले ही तय करती है हर सफर
ना कोई हमसफर की आरजू रखती है,
अजीब सी दोस्त है मेरी
नफरतों के शहर में मोहब्बत का मकाम ढूंढती है.
