लोकतंत्र में राजतंत्र
लोकतंत्र में राजतंत्र
जाति धर्म का नारा देकर,
जनता को उलझाते क्यों हो।
मानवता को ठुकराकर,
दो दिलों को मुरझाते क्यों हो।
राजनीति का भड़ुवा बनकर,
इस देश में नाच रहे हो।
खड़ा कर दिया मुद्दा तो,
फिर सामने झुंझलाते क्यों हो।
तूने तो परेशानी का सबब,
कुछ दिनों में देख लिया।
बना बडी़ बातें जनता बीच,
अपनी रोटी सेक लिया।
लोकतंत्र में राजतंत्र है,
जनता को जब पता चला।
चार-पाँच मुद्दा उलझालकर,
लोगों के बीच फेंक दिया।
यही तुम्हारा काम रहा है,
जन मन को सिखलाओगे।
सताया है सदियों से सबको,
आगे भी राह बनाओगे।
यही तुम्हारी कूटनीति,
बन जायेगी सब दुष्टनीति,
हो जायेगा विनाश सब कुछ,
मुँह कैसे दिखलाओगे।।