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ramesh kumar Singh rudra (रमेश कुमार सिंह रुद्र)

Drama Tragedy

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ramesh kumar Singh rudra (रमेश कुमार सिंह रुद्र)

Drama Tragedy

हे मानव क्या ढूंढ रहे हो

हे मानव क्या ढूंढ रहे हो

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हे मानव ! क्या ढूंढ रहे हो ?

ठूंठ भरे इस जीवन में

हर पल क्या सोच रहे हो

द्वेष भरे इस जीवन में।


मानुष योनि में जन्म लिया

मानव बनने में देर किया

मानवता भी खो डाला है

दानवता को साथ लिया॥१॥


हे मानव ! क्या ढूंढ रहे हो ?

लोभ-मोह संसार में

छली बीच क्या खोज रहे हो

सत्य रो रहा संहार में।


भ्रष्टाचार साथ लिया सब

अत्याचार बढ़ा यहाँ अब

बलात्कारी बढ़ चले यहाँ

पथगमन दुश्वार हुआ अब॥२॥


हे मानव ! क्या ढूंढ रहे हो ?

सरकारी कार्यालय में

कानून शिकंजा ढूंढ रहे हो

भ्रष्ट बने न्यायालय में।


नहीं मिलेगा न्याय वहाँ अब

भरे जालसाज वहाँ सब

न्याय तराजू टूट गया है

देखना है जुटता है कब॥३॥


हे मानव ! क्या ढूंढ रहे हो ?

नेताओं की टोली में

लोभ प्रवृति छिपा हुआ है

इन सबकी झोली में।


जितना सफेद कपड़ा है

उतना ही काला नखरा है

इनसे क्या उम्मीद रखे हो

देश के लिए ये खतरा है॥४॥


हे मानव ! क्या ढूंढ रहे हो ?

प्रशासनिक रक्षक में

इनसे भी मन टूट चुका है

समय गँवाते भक्षक में।


चलते हैं पहन के खाकी

कहते हैं अपनाते साखी

उम्मीद लायक नहीं बचें

इमान बना गया है राखी॥५॥


हे मानव ! क्या ढूंढ रहे हो ?

पारंपरिक इन बातों में

परंपरा मानव को बाँटा

नियम बनाए रातों में।


जीने का आधार बनाया

मानवता बाहर हटाया

स्वार्थ सिद्धि हेतु सबने

मानव, मानव को हराया॥६॥


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