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Vipin Baghel

Inspirational

4.7  

Vipin Baghel

Inspirational

लक्ष्य की प्रेरणा

लक्ष्य की प्रेरणा

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मैं हूँ पागल कृष्ण दीवाना ,

अब जीवन में हुआ सयाना |

कुछ तो उपजी चाह हमारी ,

कुछ नूतन करने की बारी ||1


राह बनाकर चल दे अब तू ,

सोच समझ कर बढ़ना अब तू |

राहों में भटकाव बहुत से ,

मन में हैं बदलाव बहुत से ||2


इस अनजान, अनभिज्ञ जगत में ,

विपत्तियां नयी, चुनौतियां कई |

फिर भी लगे रो तुम राही,

राहें सही गलत न कुछ भी ||3


उषा जाग उठी पूरब में ,

गुंजायन करते खग नभ में |

अब जाग गयी ये वसुधा सारी 

अब तुम भी जागो ओ हमराही ||4


लहरें उठीं ज्वार बन मन में ,

जीव जंतु खग चहके वन में |

लक्ष्य का मन में डालो डेरा ,

फिर ये सकल संसार हमारा ||5


सागर सी गहराई लेकर ,

स्थिर विशाल हिमालय बनकर |

भोर किरण का सूरज जैसा ,

अर्धरात्रि का चंद्र तिमिर सा ||6


तिमिरमयी निशा में जुगनू जैसा ,

पतझड़ बाद बसंत भोर सा |

इस सम्पूर्ण सृष्टि सा चेतन ,

सुगंध बिखेरती कुसम सा मन ||7


चन्दन सा खुद से विकट प्रेम ,

काले मेघ सा असीम क्षेम |

चंचल किरणों सी व्याकुलता ,

जल चक्र में वृष्टि सी नवीनता ||8


अब सोचा क्या सोचा जाना ,

गुजरा वक्त न फिर है आना |

अब आयी करनी की बारी ,

कदम उठा, बढ़ने की तैयारी ||9


बढ़ चल एक असीमित जाग में ,

उड़ चल एक अपरिमित जाग में |

निज तेज से भर तू रोम रोम |

सहज न मिलता अमर सोम ||10


लक्ष्य सामने , राह सामने ,

कृष्ण सामने , पार्थ सामने |

गीता का उपदेश सामने ,

कर्मों का परमार्थ सामने ||11


कर्तव्यबोध हित कुछ है पाना ,

अब मुझको बढ़ते है जाना |

मैं हूँ पागल कृष्ण दीवाना ,

अब जीवन में हुआ सयाना ||12

 



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