लक्ष्य की प्रेरणा
लक्ष्य की प्रेरणा
मैं हूँ पागल कृष्ण दीवाना ,
अब जीवन में हुआ सयाना |
कुछ तो उपजी चाह हमारी ,
कुछ नूतन करने की बारी ||1
राह बनाकर चल दे अब तू ,
सोच समझ कर बढ़ना अब तू |
राहों में भटकाव बहुत से ,
मन में हैं बदलाव बहुत से ||2
इस अनजान, अनभिज्ञ जगत में ,
विपत्तियां नयी, चुनौतियां कई |
फिर भी लगे रो तुम राही,
राहें सही गलत न कुछ भी ||3
उषा जाग उठी पूरब में ,
गुंजायन करते खग नभ में |
अब जाग गयी ये वसुधा सारी
अब तुम भी जागो ओ हमराही ||4
लहरें उठीं ज्वार बन मन में ,
जीव जंतु खग चहके वन में |
लक्ष्य का मन में डालो डेरा ,
फिर ये सकल संसार हमारा ||5
सागर सी गहराई लेकर ,
स्थिर विशाल हिमालय बनकर |
भोर किरण का सूरज जैसा ,
अर्धरात्रि का चंद्र तिमिर सा ||6
तिमिरमयी निशा में जुगनू जैसा ,
पतझड़ बाद बसंत भोर सा |
इस सम्पूर्ण सृष्टि सा चेतन ,
सुगंध बिखेरती कुसम सा मन ||7
चन्दन सा खुद से विकट प्रेम ,
काले मेघ सा असीम क्षेम |
चंचल किरणों सी व्याकुलता ,
जल चक्र में वृष्टि सी नवीनता ||8
अब सोचा क्या सोचा जाना ,
गुजरा वक्त न फिर है आना |
अब आयी करनी की बारी ,
कदम उठा, बढ़ने की तैयारी ||9
बढ़ चल एक असीमित जाग में ,
उड़ चल एक अपरिमित जाग में |
निज तेज से भर तू रोम रोम |
सहज न मिलता अमर सोम ||10
लक्ष्य सामने , राह सामने ,
कृष्ण सामने , पार्थ सामने |
गीता का उपदेश सामने ,
कर्मों का परमार्थ सामने ||11
कर्तव्यबोध हित कुछ है पाना ,
अब मुझको बढ़ते है जाना |
मैं हूँ पागल कृष्ण दीवाना ,
अब जीवन में हुआ सयाना ||12