लक्ष्मण रेखा
लक्ष्मण रेखा
स्त्री, सदा से पर्याय ही है,
प्रेम के सागर का,
अथाह प्रेम करती है,
परन्तु जब विश्वास टूटता है बार-बार,
लक्ष्मण रेखा खींच ही देती है ।
स्त्री, सदा से पर्याय ही है,
करूणा के भंडार का,
अथाह करूणा करती है,
परन्तु अत्याचार की सीमा लांघने लगे कोई,
लक्ष्मण रेखा खींच ही देती है ।
स्त्री, सदा से पर्याय ही है,
ममता की निधि का,
अथाह ममता करती है,
परन्तु कुपूत नही बनने देती,
लक्ष्मण रेखा खींच ही देती है ।
स्त्री, सदा से पर्याय ही है,
पवित्र गंगा का,
अथाह निर्मलधारा बन बहती है,
परन्तु चरित्र पर लांछन लगाये जब कोई,
लक्ष्मण रेखा खींच ही देती है ।
लक्ष्मण रेखा, लक्ष्मण ने खींची थी,
एक स्त्री के लिए एक बार,
परन्तु न जाने अब क्यों,
हर स्त्री को खींचनी पड़ती है बार-बार।