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ritesh deo

Abstract

4  

ritesh deo

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लक्ष्मण रेखा

लक्ष्मण रेखा

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स्त्री, सदा से पर्याय ही है,

प्रेम के सागर का,

अथाह प्रेम करती है,

परन्तु जब विश्वास टूटता है बार-बार,

लक्ष्मण रेखा खींच ही देती है ।


स्त्री, सदा से पर्याय ही है,

करूणा के भंडार का,

अथाह करूणा करती है,

परन्तु अत्याचार की सीमा लांघने लगे कोई,

लक्ष्मण रेखा खींच ही देती है ।


स्त्री, सदा से पर्याय ही है,

ममता की निधि का,

अथाह ममता करती है,

परन्तु कुपूत नही बनने देती,

लक्ष्मण रेखा खींच ही देती है ।


स्त्री, सदा से पर्याय ही है, 

पवित्र गंगा का,

अथाह निर्मलधारा बन बहती है,

परन्तु चरित्र पर लांछन लगाये जब कोई,

लक्ष्मण रेखा खींच ही देती है ।


लक्ष्मण रेखा, लक्ष्मण ने खींची थी,

एक स्त्री के लिए एक बार,

परन्तु न जाने अब क्यों, 

हर स्त्री को खींचनी पड़ती है बार-बार।    


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