लिखते क्यों हो
लिखते क्यों हो
जो बात हम लबों,
से ना कह सके,
वो बात हम कागज,
पर तराशते गए।
दिल की हर ख्वाहिश,
शब्दों की थाली,
में परोशते गए।
हर पन्ने पर एक,
नई कहानी बयाँ की,
इंसान न सही पर,
कलम से आशिकी की।
कभी स्याही से,
तो कभी खून से,
हमने लिखा,
बड़े जुनून से।
अंत में जब ढूँढने,
निकले स्वयं को,
तो कागज पर ही,
पाया स्वयं को।