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Archana Tiwary

Abstract Inspirational

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Archana Tiwary

Abstract Inspirational

लौट जाऊँगी

लौट जाऊँगी

1 min
220


जैसे बरसात के मौसम के बाद वह काले बादल 

बरसात की नन्ही बूंदें कहीं लौट जाती है 

रात की काली परछाई सुबह की

एक किरण के आते ही कहीं खो जाती है

इतने बड़े बड़े पेड़ वापस लौट जाते हैं एक छोटे से बीज में 

कई रीति-रिवाजों और संस्कृतियों के साथ

बड़ी-बड़ी सभ्यता लौट जाती है 

एक इतिहास बनकर मैं भी लौट जाऊंगी एक दिन 


जैसे सारे महाकाव्य भाषाएं किस्से कहानियां

लौट जाती है इक दिन ब्रह्मांड की तरफ 

मृत्यु जैसे जाती है जीवन की गठरी उठाए उदास 

रक्त ना जाने कहा लौट जाती है शुष्क शिराओं को छोड़कर 

कोई आदमी बहुत दिनों से बेहोशी के बाद

एक पल के लिए आंख खोल देख लेता आस पास 

लौट जाता उस अनंत की ओर

लौट जाऊंगी मैं भी एक दिन

बरसात की बूंदों में, काले बादलों संग

आऊंगी फिर लौट एक दिन


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